विद्या आश्रम, सारनाथ में 7,8,9 अक्तूबर 2025 को बहुजन स्वराज पंचायत का आयोजन किया जाना है। इसका मकसद दुनिया भर में लोकविद्या-समाज के लोग यानि किसान, कारीगर, आदिवासी समाज, महिलाएं, लोककलाकार और छोटी दुकानदारी अथवा सेवाकार्य करने वाले लोगों में अपने हक के प्रति जागरूकता पैदा करना।
कुछ दिन पहले ही विद्या आश्रम, सारनाथ में अक्टूबर में प्रस्तावित ‘स्वराज पंचायत’ की घोषणा/निमंत्रण पोस्ट की गई थी।
पंचायत की तैयारी के दौरान कई लोगों ने यह राय व्यक्त की कि इस पंचायत का नाम ‘बहुजन स्वराज पंचायत’ होना चाहिए। ये बात आयोजकों को ठीक ही लग रही है और अब इस पंचायत का नाम ‘बहुजन स्वराज पंचायत’ होगा।
सामान्य जन-जीवन की बदहाल अवस्था के प्रति सत्ता के विचार और व्यवस्था की उत्तरदायित्वहीनता आज का सबसे बड़ा संकट है। दुनिया भर में लोकविद्या-समाज के लोग यानि किसान, कारीगर, आदिवासी समाज, महिलाएं, लोककलाकार और छोटी दुकानदारी अथवा सेवाकार्य करने वाले तमाम समाजों में व्याकुलता नज़र आती है। अपने अधिकारों के लिए उनके बड़े-बड़े आन्दोलन और संघर्ष भी सत्ता के चरित्र में कोई बदलाव नहीं ला पा रहे हैं। 20वीं सदी के राष्ट्र और राज्य के विचार और व्यवस्थाओं में अब कोई आशा और ऊर्जा दिखाई नहीं दे रही है।
ऐसे में पिछले कुछ समय से वैश्विक पैमाने पर राष्ट्र और राज्य की कल्पनाओं पर नई बहस आकार लेती रही है। इस बहस के दो छोर दिखाई दे रहे हैं। एक छोर की शुरुआत दक्षिण अमेरिका में इक्वाडोर और बोलीविया देशों के मूल निवासियों की नई राजनीति के उदय से हुई है। इन देशों में बहुराष्ट्रीय-राज्य (प्लूरिनेशनल-स्टेट) की एक नई अवधारणा अस्तित्व में आई और उसके हिसाब से इन्होंने अपने ज्ञान (लोकविद्या) के बल पर राष्ट्र का संविधान बनाने की पहल ली। हम मानते हैं कि यह घटना दुनिया भर के बहुजन-समाजों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
इसके कुछ ही वर्षों बाद कई देशों में नवरूढ़िवादियों (नियो कंज़र्वेटिव) की सरकारें बनने के चलते इस बहस का दूसरा छोर आकार लेने लगा और बड़ी तेज़ी से फैलता गया। दूसरे छोर पर जिन विचारों के इर्द-गिर्द ये बहस फ़ैलने लगी उनमें सभ्यतागत-राज्य (सिविलिज़ेशनल-स्टेट), राष्ट्र-राज्य (नेशन-स्टेट), उदार लोकतंत्र (लिबरल डेमोक्रेसी), सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (कल्चरल नेशनेलिस्म) प्रमुख हैं। बहस का यह दूसरा छोर जिन देशों की पहल पर जिंदा है उनके शासक वर्ग बुनियादी तौर पर साम्राज्यवादी मंशा और विचारों के पैरोकार हैं।
हमारा मानना है कि इस वैश्विक बहस में ‘स्वराज’ को ले आने की पहल करनी चाहिए। ‘स्वराज’ यह बहुजन-समाज के विचार और परम्परा का हिस्सा है। भारत के किसान आन्दोलन के लम्बे दौर में हम स्वराज की परंपराओं की स्पष्ट झलक देख चुके हैं। ‘न्याय, त्याग और भाईचारा’ के नारे व मूल्य में उनकी दृढ निष्ठा के नतीजों का असर भी देख चुके हैं।
इस बहस से स्वराज के नाम पर एक नई और लोकोन्मुख राजनीति के उदय की संभावना बनती दिखाई देती है। इन सन्दर्भों में बहुजन-समाज अपने दर्शन व राज परम्पराओं के सिलसिले में आज क्या कहना चाह सकता है? आयोजन से पहले ‘बहुजन स्वराज पंचायत’ के नाम से एक पुस्तिका भी प्रकाशित की जा रही है।
आयोजकों में लोकविद्या जन आन्दोलन, भारतीय किसान यूनियन वाराणसी,स्वराज अभियान, बुनकर साझा मंच माँ गंगा निषाद सेवा समिति, गाँव के लोग, कारीगर नजरिया, कमलेश कुमार राजभर, किसान न्याय मोर्चा, लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर, लोकविद्या समन्वय समूह , ग्राम भकलाय, इंदौर प्रमुख हैं।
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