जयशंकर प्रसाद की कहानी आकाशदीप
बंदी! क्या है? सोने दो। मुक्त होना चाहते हो? अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो। फिर अवसर न मिलेगा। बड़ा शीत है, कहीं से एक कंबल डालकर कोई शीत से मुक्त करता। आँधी की संभावना है। यही अवसर है। आज मेरे बंधन शिथिल हैं। तो क्या तुम भी बंदी हो? हाँ, धीरे बोलो, इस […]
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