Government's indifference towards the Muslim community

मुस्लिम सेना अधिकारी महज सफल प्रतीक, इससे मुस्लिम समुदाय के प्रति सरकार की बेरूखी नहीं धुल जाएगी

हस्तक्षेप

जिस समय दिल्ली में भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी दुनिया को बतला रही थीं कि भारत ने पाकिस्तान को 22 अप्रैल का जवाब दे दिया है, उसी समय भारत के एक कोने उरी में रहनेवाली फ़ातिमा पूछ रही थी कि वह अपने 3 बच्चों को लेकर कहां जाए?

सोफ़िया क़ुरैशी मात्र एक प्रतीक है, जबकि उरी की फ़ातिमा सीधा दिखने वाला दृश्य है, कोई प्रतीक नहीं। वह सोफ़िया की प्रतीकात्मकता के सौंदर्य को खंडित कर देती है। उसका सवाल एक नागरिक का अपनी सरकार से सवाल है। इस सवाल की इस राष्ट्रीय क्षण में कोई जगह नहीं।

भारतीय राष्ट्रवाद को सुंदर बनाने के लिए सोफ़िया क़ुरैशी का उपयोग है। 3 बच्चों वाली फ़ातिमा के सिर पर कोई फ़ौजी टोपी नहीं। सोफ़िया असाधारण है, फ़ातिमा नितांत साधारण।

सोफ़िया क़ुरैशी इस वक़्त भारतीय राष्ट्रवाद की प्रवक्ता हैं, इसलिए स्वीकार्य हैं। भारतीय राष्ट्र ने, जो पिछले 10 साल से हिंदू राष्ट्र में तब्दील होता चला गया है, सोफ़िया को अपना प्रतिनिधि बनाया है, व्योमिका सिंह के साथ।

सोफ़िया क़ुरैशी की आवाज़ हमारी उत्तेजित स्नायुओं को सहलाने के लिए बहुत मुफ़ीद है, लेकिन एक मामूली घरेलू औरत फ़ातिमा का सवाल हमें उलझन में डाल देता है। वह सरकार से सवाल कर रही है कि उसकी हिफ़ाज़त का इंतज़ाम क्यों नहीं किया गया है।

फ़ातिमा का सवाल सरकार को उसकी ज़िम्मेदारी की याद दिलाता है, इसलिए हम सबके लिए असुविधाजनक है। यह वक्त सिर्फ़ सरकार के साथ खड़े होने का है, उससे सवाल पूछने का नहीं। क्या हमें युद्धकाल का शिष्टाचार नहीं मालूम?

ये सारे लोग बच सकते थे, अगर सरकार अपना साधारण काम करती। यह उरी की फ़ातिमा कह रही है और पुंछ की रणवीर कौर भी। वे पूछ रही हैं कि हम सब सरहद के सिर्फ़ 7 किलोमीटर भीतर हैं, पाकिस्तान की गोलीबारी की जद में। वे पूछ रही हैं कि उन सबकी सुरक्षा का कोई इंतज़ाम क्यों नहीं किया गया? क्यों कोई चेतावनी नहीं दी गई? क्यों उन्हें बचाव की कोई ड्रिल नहीं कराई गई? क्यों उनके लिए बंकर नहीं बनाए गए? उन्हें वहां से हटाकर सुरक्षित जगह जम्मू क्यों नहीं ले जाया गया?

रणवीर भी वही पूछ रही हैं, जो फ़ातिमा पूछ रही है। क्या सरकार यह अनुमान नहीं लगा सकती थी कि पाकिस्तान वहां गोलीबारी करेगा? यह ड्रिल दिल्ली में हो रही थी, उत्तर भारत के शहरों में हो रही थी। जहां होनी चाहिए थी, वहां नहीं। क्यों? यह साधारण बात सरकार को न सूझी।

फ़ातिमा और रणवीर पूछ रही हैं कि सरकार अपना मामूली काम भी क्यों नहीं करती?

पराक्रम का प्रदर्शन हमेशा अभिभूत कर देता है। फर्ज कीजिए, वहां सुरक्षाकर्मी होते तो या तो दहशतगर्द वहां आते ही नहीं या उनका मुक़ाबला किया जाता। तो वे सिर्फ़ हिंदुओं को मार नहीं पाते। अगर बैसरन में हिफ़ाज़त का प्रशासकीय काम किया गया होता, तो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पराक्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती।

लेकिन फिर कोई खबर नहीं बनती। कोई दृश्य नहीं बनता। कोई हिंदू ज़ख़्म नहीं बनता। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की ज़रूरत भी नहीं नहीं पड़ती। किसी सोफ़िया क़ुरैशी को किसी व्योमिका सिंह के साथ खड़ा करने की नाटकीयता की आवश्यकता नहीं होती।

लेकिन एक सरकार, जो मात्र समाज में विभाजन पैदा करने में व्यस्त हो, जिसका पूरा पूरा ध्यान सिर्फ़ मुसलमानों को क़ाबू करने में ही लगा हो, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ समाज में अराजकता पैदा करने के लिए नीतियां बना रही हो, वह समाज के किसी तबके की सुरक्षा की चिंता कैसे कर सकती है?

सोफ़िया और व्योमिका को साथ देख धर्मनिरपेक्ष लोग जय-जयकार कर रहे हैं कि यही उनका भारत है। यह तस्वीर उनकी उस सरकार ने बनाई है, जिसका मुखिया अभी कुछ पहले ही मुसलमानों को पंक्चर बनाने वाला कह चुका है।

वे सब जानते हैं कि यह उनका भारत नहीं है। उनका भारत वह है, जहां इस तस्वीर के आने तक एक हिंदू औरत हिमांशी नरवाल पर सिर्फ़ यह कहने के लिए चौतरफ़ा हमला किया जा रहा था कि दहशतगर्द हमले में उनके फ़ौजी पति की हत्या का बदला मुसलमानों और कश्मीरियों पर हमले से नहीं लिया जाना चाहिए। जिस सरकार ने सोफ़िया को अपना चेहरा बनाकर खड़ा किया है, वह एक फ़ौजी की पत्नी के साथ नहीं खड़ी हुई। सिर्फ़ इसलिए उसे अकेला छोड़ दिया कि वह अपनी तकलीफ़ के साथ और उसके बावजूद मुसलमानों के साथ खड़ी हुई थी।

एक हिंदू को इसकी इजाज़त नहीं कि वह मुसलमानों के प्रति सहानुभूतिशील हो, मानवीय हो। उसे सिर्फ़ हिंदुत्ववादी राष्ट्रवादी होने की अनुमति है।

दरअसल जो हिमांशी नरवाल ने कहा, वह भारत सरकार को कहना चाहिए था। लेकिन उसने अपने लोगों को छूट दी कि मुसलमानों को अपमानित करें, उन्हें मारें। मुसलमानों और कश्मीरियों पर हमले के समय उसने चुप्पी रखी। ये गालियां जिन मुसलमानों को दी जा रही थीं उनमें सोफ़िया, उनका परिवार शामिल है या नहीं?

एक असंभव कल्पना कीजिए। मान लीजिए फ़ातिमा और रणवीर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही हों, तो क्या हमारे टीवी कैमरा उनके आगे खड़े होंगे? क्या वह वैसा फ़्रेम बनाएंगे, जो अलग-अलग कोण से उन्होंने सोफ़िया और व्योमिका का बनाया? क्या फ़ातिमा और रणवीर को देखकर हम कहेंगे कि यह हमारा भारत है?

उत्तर हम जानते हैं।

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