गबन- उपन्यास मुंशी प्रेमचंद

बरसात के दिन हैं, सावन का महीना। आकाश में सुनहरी घटाएँ छाई हुई हैं। रह – रहकर रिमझिम वर्षा होने लगती है। अभी तीसरा पहर है; पर ऐसा मालूम हों रहा है, शाम हो गयी। आमों के बाग़ में झूला पड़ा हुआ है। लड़कियाँ भी झूल रहीं हैं और उनकी माताएँ भी। दो-चार झूल रहीं […]

Continue Reading
Rahul Sankrityayan, the truth seeker

धर्म मनुष्य की मानसिक दासता का समर्थक है : राहुल सांकृत्यायन

गणेश कछवाहा “हमें अपनी मानसिक दासता की बेड़ी की एक-एक कड़ी को बेदर्दी के साथ तोड़कर फेंकने के लिए तैयार रहना चाहिए। बाहरी क्रांति से कहीं ज़्यादा ज़रूरत मानसिक क्रांति की है। हमें आगे-पीछे, दाहिने-बाएं दोनों हाथों से नंगी तलवारें नचाते हुए अपनी सभी रूढ़ियों को काटकर आगे बढ़ना होगा।” … “रूढ़ियों को लोग इसलिए […]

Continue Reading