Premchand: The immortal legacy of a great litterateur

प्रेमचंद: एक महान साहित्यकार की अमर विरासत

साहित्य

साहित्य में यथार्थ और संवेदना का संगममुंशी प्रेमचंद (1880-1936) हिंदी और उर्दू साहित्य के ऐसे युग-प्रवर्तक साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से भारतीय समाज के यथार्थ, उसकी कमियों, और मानवीय संवेदनाओं को इतनी गहराई से उकेरा कि उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं।

प्रेमचंद की लेखनी का वैशिष्ट्य उनकी सादगी, सामाजिक चेतना और मानव मन की सूक्ष्म समझ में निहित है। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज में बदलाव की प्रेरणा भी दी।

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के लमही गाँव में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन वे ‘प्रेमचंद’ के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने उर्दू में लेखन शुरू किया और बाद में हिंदी साहित्य में योगदान दिया। उनकी रचनाएँ यथार्थवादी साहित्य का उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जो सामाजिक कुरीतियों, आर्थिक विषमता, और मानवीय संघर्षों को बखूबी चित्रित करती हैं।

प्रेमचंद की लेखनी में यथार्थवाद का पुट उनकी रचनाओं को जीवंत बनाता है। उनके उपन्यास जैसे गोदान, गबन, और कर्मभूमि में ग्रामीण और शहरी भारत की समस्याओं का सजीव चित्रण मिलता है। गोदान में होरी जैसे पात्र के माध्यम से उन्होंने किसानों की दयनीय स्थिति और सामंती व्यवस्था की क्रूरता को उजागर किया।

प्रेमचंद ने अपनी लेखनी को सामाजिक सुधार का माध्यम बनाया। उनकी कहानियाँ जैसे ईदगाह, नमक का दारोगा, और पूस की रात सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार, और गरीबी के खिलाफ आवाज उठाती हैं। ईदगाह में हामिद का अपने सीमित साधनों में दादी के लिए चिमटा खरीदना मानवीय संवेदना और त्याग का प्रतीक है।

प्रेमचंद की रचनाओं में पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण उनकी लेखनी की गहराई को दर्शाता है। कफन जैसी कहानी में घीसू और माधव की त्रासदी सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ मानव स्वभाव की जटिलता को भी उजागर करती है।

प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज, और जनमानस की थी। उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों में लिखा, जिससे उनकी रचनाएँ व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचीं। उनकी लेखनी में लोकभाषा और मुहावरों का प्रयोग कहानियों को जीवंत बनाता है।

प्रेमचंद की रचनाएँ दो श्रेणियों में बाँटी जा सकती हैं, उपन्यास और कहानियाँ। उनके प्रमुख उपन्यासों में सेवासदन, रंगभूमि, निर्मला, और गोदान शामिल हैं। सेवासदन में वैश्यावृत्ति और सामाजिक पाखंड को उजागर किया गया, जबकि निर्मला में दहेज प्रथा की त्रासदी को दर्शाया गया। उनकी कहानियों में पंच परमेश्वर, शतरंज के खिलाड़ी, और बड़े घर की बेटी जैसी रचनाएँ सामाजिक मूल्यों और नैतिकता की बात करती हैं।

प्रेमचंद की लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौर में समाज को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रचनाओं ने न केवल सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया, बल्कि लोगों में आत्मचिंतन और सुधार की भावना भी जगाई।

आज के दौर में भी प्रेमचंद की लेखनी उतनी ही प्रासंगिक है। गरीबी, भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता, और मानवीय संघर्ष आज भी समाज का हिस्सा हैं। उनकी रचनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज के दर्पण और परिवर्तन का हथियार भी है।

निष्कर्षमुंशी प्रेमचंद की लेखनी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। उनकी रचनाएँ समाज की सच्चाई को उजागर करती हैं और मानवता के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करती हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास न केवल साहित्यिक कृतियाँ हैं, बल्कि सामाजिक चेतना और नैतिकता का पाठ भी हैं। प्रेमचंद की लेखनी यथार्थ और संवेदना का ऐसा संगम है, जो हर युग में पाठकों को प्रेरित करता रहेगा।

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