दिलकुशा महल की पहचान मिटाने के बजाये योगी जी को धर्मों का सम्मान करना सीखना चाहिए- शाहनवाज़ आलम

राजनीति राज्य

लखनऊ। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने फैज़ाबाद को बसाने वाले नवाब शुजा-उद-दौला की दिलकुशा कोठी की जगह ‘साकेत सदन’ बनाने की योगी सरकार की कोशिश को साम्प्रदायिक कुंठा से भरा फैसला बताते हुए इसे तुरंत रोकने की मांग की है। उन्होंने इसे अल्पसंख्यक वर्ग को संविधान प्रदत्त अपनी संस्कृति, इतिहास और संस्थानों के संरक्षण के अधिकार पर भी हमला बताया है।

शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि योगी सरकार ने दिलकुशा कोठी को जर्जर बताकर उसके मरम्मत की बात की लेकिन चुपके से उसके आतंरिक संरचना को ही बदल दिया और  अब इस कोठी की जगह ‘साकेत सदन’ नाम से संग्रहालय बना रही है। जिसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और धार्मिक चीजें रखी जाएंगी। उन्होंने कहा कि अगर प्रदेश सरकार को धार्मिक संग्राहलय बनाना है तो किसी अन्य जगह भी बना सकती है। अवध के गौरवशाली इतिहास के इस प्रतीक को सिर्फ़ इसलिए मिटाकर उसकी जगह हिन्दू धार्मिक संग्रहालय बनाना कि वह मुसलमानों के इतिहास से जुड़ी है निम्न स्तर की सोच है।

उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ को यह नहीं भूलना चाहिए कि शुजाउदौला  और उसके वंश को इतिहास सेक्युलर शासकों के बतौर याद करता है। जिसने मस्जिदों के साथ उस गोरखनाथ पीठ को भी ज़मीन दान दी थी जिसके वे महंत हैं। इसलिए योगी आदित्यनाथ जी को शुजाउदौला से नफ़रत करने के बजाये उनसे शासन करने का गुण सीखना चाहिए। इससे प्रदेश में सद्भाव का माहौल बनेगा।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 1857 की जंग जीतने के बाद अंग्रेजों ने नवाबों के वारिसों को अपमानित करने के लिए उनके गौरव के प्रतीक इस महल को अफीम की खरीद-बिक्री का केंद्र बना दिया। जिसके बाद अंग्रेज़ों ने इसे अफीम कोठी का नाम दे दिया। आज योगी सरकार अंग्रेज़ समर्थक आरएसएस के उसी नज़रिये से 1857 के योद्धाओं और उनके वारिसों को अपमानित करने के लिए दिलकुशा महल की पहचान मिटाना चाहती है।

शाहनवाज़ आलम ने अयोध्या के सपा सांसद अवधेश प्रसाद से भी इस मामले में हस्ताक्षेप करने की मांग करते हुए कहा कि साझी विरासत की रक्षा करना सेक्युलर पार्टियों की सबसे अहम ज़िम्मेदारी है।

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