उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल ने सरपंच के व्यवहार की निंदा की
वाराणसी/बेतिया। पूर्वी चंपारण जिले के तुरकौलिया ग्रामसभा में प्रसिद्ध गांधीवादी नेता तुषार गांधी की सभा के दौरान हुए हंगामे को लेकर उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल ने कड़ी निंदा व्यक्त की है। मंडल के अध्यक्ष रामधीरज ने इस घटना को लोकतंत्र और गांधी विचारधारा के खिलाफ बताते हुए बिहार सरकार और केंद्र सरकार से तत्काल कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 12 जुलाई को तुरकौलिया पंचायत भवन में एक सार्वजनिक सभा आयोजित की गई थी, जिसमें तुषार गांधी, डॉ सुनीलम, विजय प्रताप, पंकज (बेतिया), शाहिद कमाल सहित अन्य प्रमुख गांधीवादी विचारकों की उपस्थिति थी। यह सभा महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए चंपारण सत्याग्रह की स्मृति और उसकी विचारधारा को लेकर आयोजित की गई थी।
सभा के दौरान अचानक स्थानीय सरपंच वहां पहुंचे और उन्होंने हंगामा करते हुए सभा को रुकवा दिया। विरोध और व्यवधान के चलते तुषार गांधी व अन्य वक्ताओं को पंचायत भवन से बाहर आकर सड़क किनारे जनता को संबोधित करना पड़ा।
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज ने कहा कि “जिस धरती से महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की थी, आज उसी धरती पर गांधी के वंशज और विचारधारा के संवाहक का अपमान हो रहा है। यह लोकतंत्र, संविधान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान का अपमान है।”
उन्होंने इसे अमानवीय और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार बताते हुए कहा कि यह आचरण न सिर्फ तुषार गांधी का अपमान है, बल्कि पूरे गांधी परिवार और उनके विचारों पर आघात है। चंपारण आंदोलन को 100 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और आजादी के 75 वर्षों बाद भी गांधीवादियों के साथ ऐसा व्यवहार अत्यंत निंदनीय है।
रामधीरज ने आगे कहा कि “आज जब देश को गांधी, विनोबा और जयप्रकाश जैसे विचारों की सबसे अधिक जरूरत है, तब सत्ता और सत्ता समर्थकों द्वारा ऐसे कृत्य देश को लोकतंत्र से विमुख करने की साजिश हैं।”
उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल ने इस घटना को देश और लोकतंत्र का अपमान करार देते हुए तुरकौलिया के सरपंच के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पूरे सर्वोदय समाज में इस घटना को लेकर गहरा आक्रोश है, और यदि प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो देशव्यापी विरोध किया जाएगा।
यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी हम उन मूल्यों को बचा पाए हैं, जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया था।
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