मौलिक अधिकारों के हनन के मामलों में हाईकोर्ट से न्याय न मिलना सुप्रीम कोर्ट के लिए चिंता का विषय होना चाहिए
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रयागराज में क़ानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना घर गिराने के मामले में प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अधिकारियों पर पीड़ितों को दस-दस लाख रूपये मुआवजा देने के आदेश को अपर्याप्त बताते हुए उन्हें एक-एक करोड़ रूपये देने की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा है कि जब अधिकारी मुख्यमंत्री के दबाव में लोगों के घर तोड़ रहे हों तब सिर्फ़ अधिकारियों से हर्जाना वसूलना अन्याय होगा। इसलिए इसका आधा हिस्सा मुख्यमंत्री से भी वसूलने का आदेश कोर्ट को देना चाहिए।
शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी कि ‘अफसरों में संवेदनशीलता नहीं है और इस कार्रवाई ने हमारी अंतरात्मा हिला दी है’ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की असंवैधानिक कार्यशैली को उजागर करता है। लेकिन कोर्ट को इस तथ्य को भी संज्ञान में रखना चाहिए कि किसी का घर अधिकारी अपनी इच्छा से नहीं ध्वस्त करते बल्कि सरकार के दबाव में उनसे ऐसा करवाया जाता है। जिससे इनकार करने पर उन्हें सस्पेंड या ट्रांसफर कर दिया जाता है। इसलिए ऐसी घटनाएं तब तक नहीं रुकेंगे जब तक सरकार के मुखिया से मुआवजा का आधा हिस्सा न वसूला जाए। उन्होंने यह भी कहा कि मुआवजे की रकम तोड़े गए घर की लागत के अनुसार होनी चाहिए। इसीलिए सभी को दस-दस लाख देने का आदेश तथ्य आधारित न्यायिक आदेश के बजाए पंचायत का आदेश ज़्यादा लग रहा है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि विकास प्राधिकरणों को नहीं भूलना चाहिए कि आश्रय का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 का हिस्सा है। यह मौलिक अधिकार स्पष्ट तौर पर कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा । उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को यह भी संज्ञान में रखना चाहिए कि मौलिक अधिकारों के हनन के इस मामले में भी पीड़ितों की याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था जिसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा था। जो इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाता है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि इस मामले में पीड़ित व्यक्ति आर्थिक और सामाजिक तौर पर मजबूत थे इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट तक जा सके। अगर वो कमज़ोर होते और इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा उनकी याचिका खारिज कर देने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट नहीं जा पाते तब सुप्रीम कोर्ट को ‘हैरान’ होने और उसकी ‘अंतरात्मा के हिल जाने’ का अवसर नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट और निचली अदालतें इस समय सरकार के दबाव में काम करने के पर्याप्त उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं जिसपर सुप्रीम कोर्ट को गंभीरता से कार्यवाई करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से लोग सिर्फ़ आदर्शवादी टिप्पणीकार की भूमिका में रहने की उम्मीद नहीं रखते बल्कि उससे कार्यान्वयन की अपेक्षा रखते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट शेखर यादव, अमित दिवाकर, रोहित रंजन अग्रवाल और राम मनोहर नारायण मिश्रा जैसे जजों के मामले में कार्यान्वयन करने में विफल प्रतीत हुआ है।
