Vultures hovering over shared heritage.

साझा विरासत पर मंडराते गिद्ध और साजिश के पीछे की सियासत को समझने की जरूरत

हस्तक्षेप

जब एक ही तरह की घटना को बार-बार दोहराया जाए, हर बार घटना को एक ही तरीके से अंजाम दिया जाए, तो घटनाएं अचानक नहीं घटती ; उसके पीछे सोची समझी योजना होती है, साजिश होती है और इन साजिशों के पीछे एक सियासत होती है।

उज्जैन में 2 मार्च को घटी घटना के वीडियो ने सबको चिंता में डाल दिया है। दो अल्पसंख्यक समुदाय के युवकों को हाथ में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियों डाल कर पुलिस बाजार में जुलूस निकाल रही थी। पुलिस के दो सिपाही उन्हें पीट रहे थे और पिटते हुए युवक नारे लगा रहे थे, “गाय हमारी माता है, पुलिस हमारी बाप है।” इस घटना के अगले दिन बजरंग दल के लोगों ने जुलूस निकालने वाले पुलिस अधिकारियों को सम्मानित किया। इन्हीं नेताओं की रिपोर्ट पर पुलिस ने इन्हें गाय काटने की योजना बनाते हुए पकड़ा था।

मगर यह कोई अकेली और भूलवश हुई घटना नहीं है। एक सप्ताह पहले ही दमोह में इसी संदेह में पांच अल्पसंख्यक व्यक्तियों को पुलिस ने पकड़ा और शहर में उनका जुलूस निकाला। यहां पुलिस के साथ प्रशासन भी इस उन्माद में शामिल हो गया और आनन-फानन में पांचों आरोपियों के मकानों पर बुलडोजर चला दिया। बावजूद इसके कि सर्वोच्च न्यायालय बुलडोजर संस्कृति पर रोक लगाने और इस तरह तोड़े गए मकानों का मुआवजा देने का फैसला कई माह पहले ही सुना चुका है। अब सवाल यह है कि दोनों घटनाओं में समानता क्या है? समानता यह है कि दोनों ही मामलों में बजरंग दल के तत्वों ने रिपोर्ट की थी।

अब दूसरी घटना। नौ मार्च को चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल मैच भारत और न्यूजीलैंड के बीच था। भारत जीता और पूरे देश में उल्लास का माहौल था। मगर मध्यप्रदेश के देवास में इस अफवाह के आधार पर कि कुछ लोगों ने विपरीत टिप्पणी की है, पुलिस ने नौ लोगों को पकड़ा। उनका मुंडन करवाकर जुलूस निकाला। उन्हें देशद्रोह और रासुका के तहत सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया।

इसी समय इंदौर जिले की महू तहसील की पहचान बदलने की कोशिश हुई। नगर संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली महू अब तो डॉ. भीमराव अम्बेडकर नगर हो गया है। वहां भी चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद आरएसएस से जुड़े संगठनों की ओर से रात में ही जुलूस निकाला गया। जुलूस में आपत्तिजनक नारे लगाए गए। जुलूस जामा मस्जिद पर पहुंचा और उत्पातियों ने मस्जिद प्रांगण में घुसकर पटाखे फोड़े। रमजान की वज़ह से उस समय मस्जिद में नमाज अदा हो रही थी। महू में करीब एक साल पहले प्रशासन ने दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा कर य़ह निर्णय करवाया था कि मुस्लिम समुदाय कोई जलूस निकालेगा, तो मंदिर के सामने से नहीं निकालेगा और हिन्दुओं के जुलूस मस्जिद के सामने से नहीं गुजरेंगे। मग़र रात दस बजे के बाद पांच हजार की भीड़ न केवल जामा मस्जिद के सामने से गुजरी, बल्कि मस्जिद में घुसकर पटाखे फोड़ने लगी। प्रशासन इस पर मूक दर्शक बना रहा। इसके बाद भीड़ चुन-चुन कर मुस्लिम समुदाय की दुकानों और वाहनों को जलाने लगी। घरों में घुसकर महिलाओं के साथ मारपीट की। इसके वीडियो भी उपलब्ध हैं। मगर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की। हालांकि कुछ पीड़ित तो उनके घरों और वाहनों को आग लगाने वालों के नाम भी पुलिस को बता रहे थे। उधर मुस्लिम समुदाय के 13 लोगों के खिलाफ रासुका के तहत मुकदमा दर्ज जेल में डाल दिया गया है। स्थानीय भाजपा विधायिका तो इनकी नागरिकता खतम करने की मांग कर चुकी हैं।

इस पूरी घटना पर मुनवर राणा का शेर याद आता है:
मैं दहशतगर्द हूं बेटा बोल सकता है।
हुकूमत के इशारे पर मुर्दा बोल सकता है।

पुलिस कह रही है कि अपराधियों ने कबूल लिया है कि उन्होंने मैच जीतने के बाद जलूस न निकालने की चेतावनी दी थी। मगर रात दस बजे के बाद पांच हजार की भीड़ अचानक तो इकट्ठा नहीं हुई होगी। इसे किसने और कैसे इकट्ठा किया? प्रश्न यह भी है कि जिन लोगों के वीडियो दुकानों को तोड़ते और घरों को जलाते हुए सामने आ रहे हैं, उनके खिलाफ़ कार्यवाही क्यों नहीं हुई? फिर उस समझौते का उल्लंघन कर मस्जिद के सामने से जुलूस क्यों निकाला गया और मस्जिद में पटाखे क्यों फोड़े गए?

घटनाक्रम एक से हैं, घटनाओं का स्वरूप एक सा है, तो इनके पीछे साज़िश भी एक है और सियासत भी एक है। साजिश और सियासत को समझ कर ही प्रशासन इन साजिशों का सूत्रधार बन जाता है और मीडिया उसे हवा देता है। इसके कुछ उदाहरण इस तरह हैं :

अगस्त 2021 की दो घटनायें हैं l पहली घटना इंदौर की है, वहां एक चूड़ियां बेचने वाले युवक को पीटा गया, लूटा गया और फिर घुसपैठिया करार देकर जेल में डाल दिया गया। नौ लोगों के खिलाफ जिलाबदर की कार्यवाही हुई। बाद में जिला अदालत ने सारे आरोप खारिज कर उसे बरी कर दिया। उज्जैन में इसी माह मोहर्रम के जुलूस को लेकर मीडिया ने हंगामा किया कि जलूस में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए। दर्जनों अल्पसंख्यक युवकों पर मुकदमे दर्ज हुए। चार साल बाद कोर्ट ने सारे आरोप खारिज करते हुए कहा कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाना देशद्रोह नहीं है। हालांकि जुलूस में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ नहीं, ‘काजी साहिब जिंदाबाद’ के नारे लग रहे थे।

जुलाई 2023 में उज्जैन में महाकाल के जलूस के समय तीन अल्पसंख्यक युवकों (इसमे दो नाबालिग) पर आरोप लगे कि उन्होंने महाकाल की सवारी पर थूका है। अगले दिन उनका तीन मंजिला मकान गिराया जा रहा था और संघ से जुड़े लोग ढोल बजाकर जश्न मना रहे थे। छ: महीने बाद मुख्य शिकायतकर्ता ने अदालत में कहा कि वह तो इंदौर में रहता है, उसे पढ़ाए बगैर ही पुलिस ने उससे दस्तखत करवा लिए थे। ये घटनाएं यही बताती है कि घटनाक्रम के पीछे सोच एक है, साजिश एक है और साजिश के पीछे की सियासत भी एक ही है। जरूरत इसे समझने की है।

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