सामाजिक न्याय के शिल्पकार: बी. पी. मण्डल और भारत में सामाजिक बदलाव की क्रांति

हस्तक्षेप

भारतीय लोकतंत्र की आत्मा केवल चुनावी प्रक्रिया में नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समता के विचार में निहित है। इस विचार को भारतीय संविधान में तो स्थान मिला, लेकिन इसके धरातलीय कार्यान्वयन में जिन व्यक्तित्वों ने निर्णायक भूमिका निभाई, उनमें बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल (बी. पी. मण्डल) का नाम सर्वोपरि है। वे एक समाजशास्त्री, राजनीतिक चिन्तक और नीतिनिर्माता के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

बी. पी. मण्डल की पुण्यतिथि केवल एक श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि भारत में सामाजिक क्रांति के उस आंदोलन की स्मृति है, जिसने मण्डल आयोग’ के माध्यम से हज़ारों वर्षों की जातिगत विषमता को चुनौती दी और भारतीय राजनीति, समाज और शासन व्यवस्था में बुनियादी बदलाव किए।


बी. पी. मण्डल का जन्म 25 अगस्त 1918 को वाराणसी में हुआ था किन्तु इनका बचपन बिहार के मधेपुरा ज़िले के मुरहो गाँव में बीता। उनका परिवार एक प्रतिष्ठित ज़मींदार परिवार था, लेकिन मण्डल जी ने सामाजिक विषमता और जातिगत ऊँच-नीच को बहुत गहराई से अनुभव किया। उन्होंने राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का गहन अध्ययन किया, जिससे उनके विचारों में व्यावहारिकता और दूरदर्शिता दोनों ही विकसित हुए।

उनकी राजनीतिक यात्रा 1948 में कांग्रेस से शुरू हुई, लेकिन उनका सबसे बड़ा राजनीतिक और सामाजिक योगदान 1979 में मण्डल आयोग के अध्यक्ष के रूप में आया।


बी. पी. मण्डल भारतीय राजनीति के उस दौर में सक्रिय थे, जब देश नवोदित लोकतंत्र की दिशा में अग्रसर था। उन्होंने 1967 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अल्पकालिक (महज़ 47 दिन) कार्यकाल संभाला, लेकिन अपने छोटे से शासनकाल में भी उन्होंने गरीबों, पिछड़े वर्गों और वंचित समुदायों के हितों को प्राथमिकता दी।उनकी विचारधारा हमेशा समाजवाद और सामाजिक न्याय के मूल्यों से प्रेरित रही।


1979 में, बी. पी. मण्डल की अध्यक्षता में ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया। इसे आम तौर पर मण्डल आयोग के नाम से जाना जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य था:

  • भारत के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करना,
  • उनके सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का मूल्यांकन करना,
  • और उन्हें शासकीय सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने की सिफारिश करना।

यह आयोग दो वर्षों तक कार्यरत रहा और उसने देश के लगभग सभी राज्यों में जाकर सामाजिक संरचना, आर्थिक स्थिति और जातिगत समीकरणों का व्यापक अध्ययन किया। आयोग ने कुल 3743 ज्ञापन प्राप्त किए, 11 राज्यों का दौरा किया और 1300 से अधिक लोगों से सीधा संवाद किया।


1980 में प्रस्तुत मण्डल आयोग की रिपोर्ट ने भारतीय समाज की वास्तविक तस्वीर सामने रखी:

  • आयोग के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 52% हिस्सा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (OBC) का है।
  • आयोग ने सरकार से सिफारिश की कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण OBC समुदायों को दिया जाए
  • इसके अतिरिक्त आयोग ने सुझाव दिया कि पिछड़े वर्गों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक सहायता, शैक्षणिक अवसर, और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए विशेष योजनाएँ चलाई जाएँ।

मण्डल आयोग की यह रिपोर्ट भारत के इतिहास में उस क्षण की तरह थी, जिसने सत्ता, संसाधन और समाज की संरचना में बदलाव की नींव रखी।


मण्डल आयोग की रिपोर्ट आने के बाद तत्कालीन सरकारों ने इसे वर्षों तक लागू नहीं किया। कारण स्पष्ट था — यह रिपोर्ट भारतीय राजनीति और समाज को मूलतः बदलने का दम रखती थी।

वास्तव में इसे लागू करने की हिम्मत 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दिखाई। उन्होंने मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की, जिसके बाद:

  • देशभर में भीषण विरोध प्रदर्शन हुए।
  • विशेष रूप से शहरी उच्च जातियों के युवाओं ने इसे योग्यता के खिलाफ” करार दिया।
  • कई छात्रों ने आत्मदाह किया, विश्वविद्यालयों में आंदोलन फैला।
  • इसके बावजूद, पिछड़े वर्गों के भीतर एक नई राजनीतिक चेतना जगी, और उन्होंने सामाजिक न्याय की राजनीति को जन्म दिया।

मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करने से भारत की राजनीति में एक नई ध्रुवीकरण प्रक्रिया शुरू हुई, जिसे अक्सर मण्डल बनाम कमंडल’ के टकराव से जोड़ा जाता है।

  • मण्डल’ सामाजिक न्याय, आरक्षण, पिछड़े वर्गों की राजनीति और समावेशी लोकतंत्र का प्रतीक बना।
  • कमंडल’ धार्मिक पहचान, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और उच्च जातीय वर्चस्व के पुनर्स्थापन का प्रतिनिधित्व करने लगा।

इस टकराव ने भारत में दो समानांतर राजनीति की धाराएँ जन्म दीं — एक जाति आधारित सामाजिक न्याय की राजनीति, और दूसरी धर्म आधारित सांस्कृतिक राजनीति


मण्डल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद भारत की राजनीति में OBC नेतृत्व का उदय हुआ:

  • लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती, नीतीश कुमार, शिवपाल यादव जैसे नेता मण्डल की राजनीति के फलस्वरूप उभरे।
  • यादव-बहुजन’ समीकरण और ‘MY (मुस्लिम-यादव)’ समीकरणों ने उत्तर भारत की राजनीति में दशकों तक दबदबा बनाए रखा।
  • क्षेत्रीय दलों ने जाति आधारित प्रतिनिधित्व को संस्थागत रूप दिया और केंद्र की राजनीति को भी प्रभावित किया।

मण्डल राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र को निचले तबकों तक पहुँचाया और पंचायत से लेकर संसद तक प्रतिनिधित्व में परिवर्तन किया।


मण्डल आयोग के प्रभाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहे:

  • सिविल सेवाओं, पुलिस, शिक्षकों और विश्वविद्यालयों में पिछड़े वर्गों की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • सामाजिक पहचान का नया विमर्श शुरू हुआ — OBC, EBC, MBC जैसे वर्गों को विशेष योजनाओं में शामिल किया गया
  • नवसामाजिक आंदोलन, जैसे ‘जाति जनगणना की मांग’, ‘सामाजिक ऑडिट’, और ‘आरक्षण के भीतर आरक्षण’, ने नया राजनीतिक विमर्श गढ़ा।

मण्डल आयोग की रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों को लेकर अनेक आलोचनाएँ भी हुईं:

  • कुछ लोगों ने इसे जातिवाद को स्थायी बनाने वाला कदम कहा।
  • न्यायपालिका में इसके विरुद्ध याचिकाएँ दायर की गईं, लेकिन 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार’ मामले में 27% OBC आरक्षण को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया, जिससे इसे कानूनी बल मिला।
  • आरक्षण की सीमा को 50% तक सीमित रखने की बात भी इसी फैसले में कही गई।

आज जब भारत जातिगत जनगणना, संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) की पुनर्व्याख्या, तथा सामाजिक न्याय की पुनर्परिभाषा की मांग कर रहा है, तब बी. पी. मण्डल का दृष्टिकोण और अधिक प्रासंगिक हो गया है।

  • भारत में OBC के लिए आरक्षण एकमात्र नीति नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्गठन का माध्यम है।
  • शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समानता को सुनिश्चित करने की प्रक्रिया मण्डल की सोच से ही उपजी है।
  • उन्होंने दिखाया कि जाति केवल सामाजिक संरचना नहीं, बल्कि संसाधनों और अवसरों के वितरण का आधार भी है।

बी. पी. मण्डल का निधन 13 अप्रैल 1982 को हुआ। उनके जीवन का सबसे क्रांतिकारी कार्य – मण्डल आयोग की रिपोर्ट – उनके निधन के दो वर्ष पहले ही तैयार हो चुकी थी। वे इसे लागू होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे, परंतु उनकी दृष्टि ने भारतीय समाज की धारा को बदल डाला।


बी. पी. मण्डल केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की चेतना के वाहक थे। उन्होंने उस पीड़ा को स्वर दिया, जो सदियों से वंचित तबकों के अंतर्मन में सुलग रही थी। उन्होंने दिखाया कि राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का औज़ार हो सकती है

आज भारत में जब हम समावेशी विकास, प्रत्येक वर्ग को न्याय, और लोकतंत्र में सबकी भागीदारी की बात करते हैं, तो उसकी नींव मण्डल आयोग की रिपोर्ट और बी. पी. मण्डल के विचारों में दिखाई देती है।

उनकी पुण्यतिथि केवल श्रद्धांजलि देने का अवसर नहीं, बल्कि उनकी सोच को आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का दिन होना चाहिए।



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