Differences between Jyotiraditya Scindia and Bharat Singh Kushwaha.

भाजपाई सांसद को भाजपा सांसद से ही खतरा!

राष्ट्रीय हस्तक्षेप

आज बात मध्यप्रदेश पर, जहां एक गरीब भाजपाई सांसद को एक युवराज भाजपाई सांसद से ही खतरा है और उनकी यह शिकायत मीडिया में जोर-शोर से उछल रही है। पहले वाला सांसद ख़ांटी संघी है और दूसरा नवागत भाजपाई, लेकिन इसके पास अतीत के राजपाट का रौब है। बात संघ के मुख्यालय तक पहुंच चुकी है, लेकिन संघ भी अपने राजपाट के लिए युवराज सांसद के साथ खड़ा है।

ये गरीब सांसद हैं ग्वालियर के सांसद भारत सिंह कुशवाह और युवराज हैं गुना के सांसद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। भाजपा के इस गरीब सांसद के पास तीन करोड़ रुपयों की संपत्ति है, लेकिन सिंधिया खानदान से इसका क्या मुकाबला! कुशवाह की शिकायत है कि ग्वालियर का सांसद होते हुए भी उन्हें एक सांसद की तरह काम नहीं करने दिया जा रहा है, सांसद के रूप में सम्मान की बात तो अलग है। वे केंद्र की जिन तमाम योजनाओं के लिए भागदौड़ करते हैं, उनके स्वीकृत होते ही उन सब योजनाओं को लाने का श्रेय युवराज लूट लेते हैं और प्रशासन भी उनकी मदद करता है। उनकी यह भी शिकायत है कि अक्सर उन्हें सरकारी बैठकों में, कार्यक्रमों में आमंत्रित ही नहीं किया जाता।

भारत सिंह कुशवाहा अकेले ऐसे सांसद नहीं है, जिनकी ऐसी शिकायत हो। भाजपा की 240 सदस्यीय सांसदों की टीम में अधिकांश सांसदों की शिकायतों को ऐसी ही शिकायत है। ऐसी ही शिकायत मोदी के जंबो मंत्रिमंडल के अधिकांश मंत्रियों को भी होगी। लगता है, सबने मिलकर कुशवाह को अपना प्रतिनिधि बनाकर पेश कर दिया है।

दरअसल, जिस देश को फासीवादी गणराज्य के रास्ते पर धकेलने की कोशिश हो रही है, उसमें व्यक्ति-केंद्रित तानाशाही प्रमुख तत्व होता है, जिसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की माला जपकर दबाने-ढकने की कोशिश की जाती है। यह तानाशाही ऊपर से लेकर नीचे तक आती है और राज्य और क्षेत्र के अनुसार और व्यक्ति के वैयक्तिक चरित्र के आधार पर इसका स्वरूप अलग-अलग हो सकता है।

ऐसा लगता है कि ख़ांटी संघी होने के बावजूद कुशवाह को संघ-भाजपा की इस रीति-नीति में शिक्षित-दीक्षित होने में कुछ कसर रह गई है, वरना न तो उनको ऐसी शिकायत होती और न ही वे इतने ऊपर तक पहुंचते।

ये युवराज सिंधिया परिवार के कुलदीपक हैं। उनके पिताश्री महाराजा माधव राव की जिंदगी तो जैसे-तैसे कांग्रेस में कट गई, लेकिन युवराज को उससे अधिक कुछ चाहिए था, शायद अपने खानदान का पुराना राजपाट। अब यह लोकतंत्र में तो सीधे मिलना नहीं था, और कांग्रेस में रहते तो और भी नहीं। सो, उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा। एक तरह से, यह उनकी घर वापसी थी, क्योंकि अमूमन पूरा सिंधिया खानदान ही संघ भक्त है। माधवराव भटक गए थे, सो उनकी भटकन को बेटे ने दुरुस्त कर दिया। इतिहासकार यह बताते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में यदि सिंधिया खानदान ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया होता, तो भारत का ऐतिहासिक भविष्य होता। लेकिन 1857 की लड़ाई में उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया। तब आरएसएस का जन्म नहीं हुआ था। लेकिन 1925 में अपने जन्म के बाद से संघ की अंग्रेजों के प्रति भक्ति उसका इतिहास है, तो आज शताब्दी वर्ष में उसकी अमेरिका भक्ति वर्तमान है। इस वर्तमान का इतिहास से कोई विरोधाभास नहीं है। संघ की शब्दावली में कहें, तो यह समरसता का अनुपम उदाहरण है।

संघ के पदानुक्रम में तो कुशवाह की योग्यता न तो संघी होना है और न ही पिछड़े वर्ग से उनका ताल्लुक रखना है। इन दोनों के अतिरिक्त उनके पास एक और योग्यता है, और वह है उनका तीन करोड़ी होना। यह अतिरिक्त योग्यता उनके पास न होती, तो वे सपने में भी सांसद नहीं बन सकते थे। इसलिए संघ-भाजपा से जुड़े हैं, तो लोकतंत्र में निर्वाचित होने के बावजूद, संघ की सामाजिक व्यवस्था से बंधे तो रहना ही पड़ेगा। हमें तो भारत सिंह कुशवाह की शिकायत में कोई दम नजर नहीं आता। भागवत की सुप्रीम अदालत में उनका मामला खारिज किया जाता है और युवराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को बा-ईज्जत बरी किया जाता है।

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